श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
कटोरा ग्राम में गोस्वामीजी श्रीअनन्यमाधवदासजी गोस्वामीजी से मिले। उन्होंने बाल्यावस्था में अपनी माँ को उपदेश दिया था। श्रीगोस्वामीजी ने उसकी चर्चा चलाई।
वह प्रसंग इस प्रकार है –
जब ये छोटे थे तो ननिहाल में ही विशेष रहते थे। इनके मामा ने इन्हें खेत की रखवाली सौंपी थी। परंतु ये तो भूल करके भी चिडियाओं को नहीं उडाते थे। बल्कि उनको खाते हुए देखकर गाते-
‘रामकी चिरैया रामजी का खेत ।
खाय लै चिरैया भर भर पेट ।’
बटु बिस्वास अचल निज धरमा तीरथराज समाज सुकरमा सबहिं सुलभ सब दिन सब देसा सेवत सादर समन कलेसा अकथ अलौकिक तीरथराऊ देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ
श्री अनन्यमाधवदासजी चिडीयाओं से कहते-
राम की चिरैया रामजी का खेत।
खाय ले चिरैया भर भर पेट।
कामहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहि प्रिय जिमि दाम तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहु मोहिं राम
परिणाम यह हुआ की खेत में एक दाना भी नहीं रह गया।
किसी ने इनके मामा से जाकर शिकायत की तो वह क्रोध में भरकर जब खेत देखने आए तो ये डरके मारे भागकर एक वृक्ष के कोटर में छिप गए। दिनभर कोटर में से निकले ही नहीं, तब लोगों को चिंता हुई। जहाँ तहाँ ढूँढा गया, परंतु कोई पता नहीं लगा।
लोग हारकर बैठ गये, रात्रि हो गयी, माँ की ममता उमडी। वह रोती बिलखती रात में ही खोजते खोजते उसी वृक्ष के निकट पहुँची तो उसके करुण क्रन्दन को सुनकर इनको बड़ी दया लगी। अतः कोटर से निकलकर माँ के समीप आ गए और उपदेश के वचन बोले –
मातु रोदन करहु जनि को काको सुत मातु पित ।
एक प्रनतपाल रघुनाथ बिनु और कहुँ जनि देहु चित ॥
फिर उन्होंने पद गाया-
ऐसो सोच न करिये माता ।
देवलोक सुर देहधरी जिनि किनि पाई कुसलाता ॥
पाराकर्मी को भीषम से करन दानी से दाता ।
जिनके चक्र चलत हैं अजहु घरी न भयो बिलाता ॥
मृत्यू बांध रावन बस राखी भयो गर्व भरुहाता ।
तेऊ उडि उडि भये कालबस ज्यों तरुवरके पाता ॥
सुनु जननी अब सावधान ह्वै परम पुरातन बाता ।
माधो अनन्य दास भो हरि को कौन काहि को नाता ॥
इस प्रकार माता को उपदेश देकर स्वयं विरक्त हो गए। अपना यह प्रसंग सुनाकर अनन्यमाधवदासजी ने गोस्वामीजी से बिनती की ‘ बडे भाग्य से मुझे आप सरीखे परमरामप्रेमी का सत्संग प्राप्त हुआ है अतः आप मुझे गुरु-उपदेश प्रदान करें।
तब गोस्वामीजी ने उनकी बिनती स्वीकार की और उन्हें यह पद गाकर सुनाया –
मैं हरि पतितपावन सुने ।
मैं पतित तुम पतितपावन दोउ बानक बने ॥
ब्याध गनिका गज अजामिल साखि निगमनि भने ।
और अधम अनेक तारे जात कापै गने ॥
जानि नाम अजानि लीन्हें नरक सुरपुर मने ।
दासतुलसी सरन आयो राखिये आपने ॥
( विनयपत्रिका १६० )
इस प्रकार गोस्वामीजी से गुरु-उपदेश ग्रहण कर श्री अनन्यमाधवदासजी ने भी इस प्रकार एक पद गाया-
तब तें कहाँ पतित नर रह्यौ ।
जब ते गुरु उपदेश दीन्हों नाम नौका गह्यौ ।
लोह जैसे परसि पारस नाम कंचन लह्यौ ।
कस न कसि कसि लेहु स्वामी अजन चाहन चह्यौ ॥
उभरि आयौ बिरह बानी मोल महँगे कह्यौ ।
खीर नीर तें भयो न्यारो नरक तें निरबह्यौ ।
मूल माखन हाथ आयो त्यागि सरबर मह्यौ ।
अनन्य माधो दास तुलसी भव जलधि निरबह्यौ ॥
क्रमशः (भाग - ३५)
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷