श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
कामहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहि प्रिय जिमि दाम तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहु मोहिं राम
गतांक से आगे –
श्रीवनखण्डीजी ने गोस्वामीजी के चरण स्पर्शपूर्वक प्रणाम करके अपना सब विवरण सुनाया वनखण्डीजी की प्रार्थना पर गोस्वामीजी ने नैमिष्यारण्य के लुप्त तीर्थों की स्थापना करने के लिए उनके संग नैमिषारण्य को प्रस्थान किया। मार्ग में पाँच दिन तक अयोध्या में विश्राम किया। वहाँ एक भजन गायक के सुंदर पद गान से प्रसन्न होकर उसे स्वहस्तलिखीत गीतावली (रामायण) की एक प्रति प्रदान की।
एकदिन श्रीमनबोध तिवारी नाम के एक ब्राह्मण को श्रीरामकोट पर एक स्वर्ण की ईँट मिली। उन्होंने बडे ही हर्ष में भरकर स्वर्ण की ईंट को लाकर श्रीगोस्वामीजी को दिखाई। गोस्वामीजी ने कहा ‘पंडीतजी ! यह तो दिव्य ईंट है। भगवान की आपके उपर बडी कृपा है जो आपको इसका दर्शन हुआ। यह तो दिव्य अयोध्या की नित्य परिकर है। इसे तो आप जहाँ से लाए हैं वहीं रख आइये। इसका धाम से वियोग करना उचित नहीं है।
प्राकृत नेत्रों से नहीं दिखता है, पर संपुर्ण अयोध्या ही स्वर्ण-मणि-रत्नमय है। यह कह कर मनबोध तिवारी को परम अधिकारी जानकर प्रतीति के लिए आपने उन्हें कृपापूर्वक दिव्य अयोध्याधाम का दर्शन कराया।
मनबोधजी ने देखा कि जहाँ से हम ईंट उठा लाये हैं वहाँ के महल की एक ईंट का स्थान रिक्त है तो उनको विश्वास हो गया। श्रीगोस्वामीजी के कहने पर फिर तुरंत ही ले जाकर वह ईंट यथा स्थान रख दी।
श्री अयोध्या से चल कर रौनाही, सूकरक्षेत्र, सियाबार गाँव होते हुए लक्ष्मणपुर ( लखनौ ) पहुँचे। यहाँ श्रीलक्ष्मणजी की स्मृति में गोस्वामीजी प्रेम मग्न हो गए। यथा-
कहूँ लखनलाल को चरित बँचे ।
कहुँ प्रेम मगन ह्वै आप नचें ।
दामोदर नाम के एक निर्धन भाट को आशिर्वाद देकर गोस्वामीजी ने उसे आशुकवि बना दिया। गोस्वामीजी की कृपा से उसने बहुत धन कमाया।गोस्वामीजी वहाँ से मलिहाबाद में आए और परमभक्त ब्रजबल्लभ नामक भाट को स्वहस्तलिखीत श्रीरामचरितमानस की एक प्रति दी।
कटोरा ग्राम में गोस्वामीजी श्रीअनन्यमाधवदासजी गोस्वामीजी से मिले। उन्होंने बाल्यावस्था में अपनी माँ को उपदेश दिया था। श्रीगोस्वामीजी ने उसकी चर्चा चलाई। वह प्रसंग इस प्रकार है-
जब ये छोटे थे तो ननिहाल में ही विशेष रहते थे। इनके मामा ने इन्हें खेत की रखवाली सौंपी थी। परंतु ये तो भूल करके भी चिडियाओं को नहीं उडाते थे। बल्कि उनको खाते हुए देखकर गाते-
‘रामकी चिरैया रामजी का खेत ।
खाय लै चिरैया भर भर पेट ।’
क्रमशः (भाग – ३४)
पावन श्री अयोध्या धाम की जय 🙏🚩
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷