श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
हम लखि लखहिं हमार लखि हम हमार के बीच। तुलसी अलखहिं का लखहि राम नाम जपु नीच॥
गतांक से आगे –
एकबार आदिल शाही राज्य के थानाध्यक्ष पं. दत्तात्रेय नाम के ब्राह्मण गोस्वामीजी का दर्शन करने के लिए आए। उन्होंने बडे भावपुर्वक षोडशोपचार विधि से गोस्वामीजी की पूजा की। उनके भाव पर रीझकर शुभाशिर्वाद के साथ स्वहस्तलिखित श्रीवाल्मीकियरामायण प्रदान की।
काशी में ही एक अमरनाथ नाम का सिद्ध योगी रहता था। उसकी रुपवती पत्नी को एक बैरागी साधु फुसलाकर भगा ले गया। जिससे क्रुद्ध होकर अमरनाथ ने अपनी यौगीक सिद्धि के प्रभाव से सभी बैरागीयों को तिलक और कण्ठीमाला से रहित कर दिया। एक के अपराध से सब लोगों के धर्म कर्म में बाधा पड़ने लगी। तब सभी साधु एकत्रित होकर श्रीगोस्वामीजी के पास आए।
गोस्वामीजी ने कृपा करके सिद्ध की सिद्धि का हरण करके पुनः सबको कण्ठी और तिलक से युक्त कर दिया।
एकदिन एक नाथपंथी सिद्ध ‘अलख निरंजन’ चिल्लाता हुआ जा रहा था। गोस्वामीजी ने कुपित होकर उसे तीखे शब्दों मे उपदेश दिया की केवल रामनाम का जप करने से ही तेरा कल्याण होगा-
हम लखि लखहिं हमार लखि हम हमार के बिच ।
तुलसी अलखहिं का लखहि राम नाम जपु नीच ॥
नैमिषारण्य के एक परम धर्मात्मा ब्राह्मण श्रीवनखण्डीजी वहाँ के सभी लुप्त तीर्थों की पुनः प्रतिष्ठा करना चाहते थे। इसके लिए उन्हे प्रचुर द्रव्य की आवश्यकता थी। अतः वे भगवान शिव की आराधना कर रहे थे।
एक दिन एक प्रेत ने प्रकट होकर इनसे प्रार्थना की कि अमुक जगह अपार धन गढा है उसे लेकर आप अपना अभीष्ट सिद्ध करिए और कृपा करके इस योनि से मेरा उद्धार कीजिए। श्रीवनखण्डीजी ने मन ही मन बडे हर्षित होकर कहा ‘तुम मुझे चारों धामों का दर्शन कराकर काशी में गोस्वामी तुलसीदासजी के पास ले चलो। उनके दर्शन से तुम्हारा उद्धार हो जायेगा।’
यह सुनकर प्रेत बडा ही प्रसन्न हुआ। वह बनखण्डीजी को सभी तीर्थों की यात्रा कराकर काशीपुरी में आकर गोस्वामीजी की कुटि के सामने ऊपर आकाश में मँडराने लगा। जब लोगों की दृष्टि पडी तो सबको बडा कौतुहल हुआ। बात यह थी कि प्रेत दिखाई नही देता था, पर उसकी पीठपर बैठे हुए वनखण्डीजी आकाश में निराधार टंगे दिखाई पड़ते थे।
शोरगुल सुनकर गोस्वामीजी भी कुटि से बाहर निकले तो उनका दर्शन होते ही प्रेत का उद्धार हो गया। वह तुरंत ही दिव्य रुप धारण कर दिव्य विमान पर चढकर गोस्वामीजी की जयजयकार करता हुआ भगवद्धाम चला गया ।
क्रमशः (भाग – ३३)
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷