श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
बरसे बदरिया सावन की सावन की, मन-भावन की सावन में उमग्यो मेरो मनवा भनक सुनी हरि आवन की उमड़-घुमड़ हरि आवन कि मन भावन कि।
भगवान शिव ने गोस्वामीजी को काशी लौटने का आग्रह किया। गोस्वामीजी ने कहा कि मैं रविदत्त के कहने से जा रहा हूँ अतः उचित तो यह है कि वह आकर कहें तो मैं चलूँ। शिवजी ने कहा की मैं अभी हाल भेजता हूँ।
उधर रविदत्त ने सुना की गोस्वामीजी चले गये हैं, तो वह बहुत ही प्रसन्न होकर शिवजी का विशेष पूजन एवं दर्शन करने गया। परंतु ज्योंहि मंदिर में पहुँचा पट अपने आप बंद हो गए और क्रोधपुर्वक गंभीर आकाशवाणी हुई की ‘शीघ्रही जाकर तुलसीदासजी को मनाकर लाकर काशीपुरी लौटाओ नहीं तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा।’
रविदत्त ने भारी छल किया था अतः अकेले गोस्वामीजी के समीप जाने का साहस नहीं हुआ, गोस्वामीजी के परममित्र श्रीटोडरमलजी को साथ लेकर गया। स्वयं गोस्वामीजी के चरणों में पड़कर अपराध की क्षमाप्रार्थना की और पुनः लौट चलने का अनुरोध किया। श्रीटोडरमलजी ने निवेदन किया की अस्सी घाट पर घाट के सहित रहने के लिए नया स्थान तथा मंदिर बनकर तैयार है।
आप चलकर सुखपुर्वक वहाँ निवास करें और हम लोगों को सेवा का सौभाग्य प्रदान करें। गोस्वामीजी मित्र की बात टाल न सके। वहीं निवास करने लगे। टोडरमलजी द्वारा निर्मित वह स्थान कथा-किर्तन का केंद्र बन गया।
इसके बाद गोस्वामीजी ने एक बार जनकपुर की यात्रा की। भृगु आश्रम के पास बुआ नामक एक गलित कुष्ठ रोगी को कृपापुर्वक आरोग्य प्रदान किया।
इसके बाद बेलापतार नामक गाँव मे पहुँचे। वहाँ एक धनीदास नामक ब्राह्मण रहते थे। गोस्वामीजी उनके यहाँ अतिथि हुए। धनीदासजी को बहुत ही उदास देखकर गोस्वामीजी ने इसका कारण पूछा तो धनीदासजी ने फूँट फूँट कर रोते हुए इनके चरण पकड लिए और बोले ‘महाराज ! मैंने बडा अपराध किया है। मैं श्रीठाकूरजी को नित्य भोग लगाता हूँ।
उसे मंदिर में ही रहनेवाला एक चूहा नित्य आकर खा जाता, परंतु लोक में प्रतिष्ठा पाने के लिए मैं लोगों से सौगंधपुर्वक कहता कि मेरे द्वारा अर्पित भोग ठाकूरजी साक्षात खाते है, और प्रमाण के लिए वही चूहे का खाया दिखा देता। इस प्रकार मेरी बडी प्रसिद्धि हुई। बात बढ़ते बढ़ते यहाँ के राजा रघुनाथसिंह तक पहुँच गई।
वे भी अपने समाज के साथ दर्शन करने के लिए आए। मैंने उनको भी वही चूहे का खाया प्रसाद दिखाया। पर उनका मंत्री बडा बुद्धिमान था। उसने कहा कि यदि आज्ञा हो तो मैं मंदिर में प्रवेश करके समीप से ठाकुरजी के दर्शन करुँ। मैंने भय और लोभवश अनुमति दे दी। मंत्री ने भीतर जाकर उस चूहे को एक जगह में बैठा देख लिया। उसको निश्चय हो गया की भोग भगवान नही अपितु चूहा खाता है।
उसने राजा को यह बात जना दी। राजा को मेरे झूठे प्रचार पर बडा रोष आया और बोले की कल मैं फिर दर्शन करने के लिए आऊँगा। कल भोग मेरे सामने लगेगा। यदि ठाकुरजी प्रत्यक्ष पाये, तब तो मेरा सर्वस्व उनके चरणों में समर्पित है, पर यदि नहीं पाये तो आपको प्राणदण्ड दिया जायगा। अतः हे प्रभो कल निश्चय ही मेरे प्राण जाएंगे।
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः (भाग – २९)