श्वेता पुरोहित –
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
अस प्रभु दीन बंधु हरि कारण रहित दयाल तुलसीदास सठ ताहि भज छाँड़ि कपट जंजाल
इस प्रकार प्रशस्ति लिखकर श्रीमधुसूदन सरस्वतीजी ने बडे समारोह के साथ रामचरितमानस को सुंदर विमान पर विराजमान कराके बाजे गाजे सहित वापस भेजा।
जब पंडितों ने आकर पूछा तो सरस्वतीजी ने कहा की ‘मेरी राय तो यह है कि जिन शिवजी ने प्रमाणित किया है, उन्हीं से यह भी निर्णय कराया जाए कि किस कोटि का ग्रंथ है।’
ब्राह्मणोंने यह बात गोस्वामीजीसे कही। उन्होंने भी अनुमति दे दी। फिर ब्राह्मणों ने शिवमंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखकर उसके उपर इतिहास, पुराण, शास्त्र आदि रखकर सबसे उपर वेद रखे गये और रात्री में पट बंद कर दिया।
प्रातःकाल पूरी काशीपुरीञकी जनता यह जानने के लिए उमड़ पड़ी की शिवजी ने क्या निर्णय दिया है ? जब पट खोला गया तो सबने देखा की रामचरितमानस वेदों के भी उपर विराजमान है। तब तो सभी ब्राह्मण अत्यंत लज्जीत हो गए और गोस्वामीजी के चरणों पर गिर पडे। बारबार दण्डवत करके अपराध की क्षमा याचना की और भक्तिपुर्वक उनका चरणोदक ग्रहण किया। इसके बाद काशी के ब्राह्मणों ने फिर कभी विरोध नहीं किया। गोस्वामीजी वहीं रहने लगे।
बंगाल प्रांत के नवद्वीप के आशुकवि पंडित रविदत्तजी उन दिनों काशी वास कर रहे थे। गोस्वामीजी की प्रतिष्ठा इनके लिए ईर्ष्या का विषय बन गयी। अतः उन्होंने हठ करके पूज्यपाद गोस्वामीजी से शास्त्रार्थ किया, परंतु गोस्वामीजी के समक्ष पराजीत हो गए।
रविदत्त बुरी तरहणसे हार गये लेकिन फिर भी शांत नही हुए। शास्त्र से हारे तो शस्त्र संभाला। जब गोस्वामीजी गंगा स्नान करने गए तो लाठी लेकर रविदत्त उनको मारने के लिए गए। परंतु श्रीहनुमानजी को उनकी रक्षा में तत्पर देखकर ये अपना सा मुँह लेकर लौट आए। पर मन से अभी भी ईर्ष्या नहीं गयी थी।
अबकी बार छल का आश्रय लेकर उपर से अत्यंत विनम्र बनकर गोस्वामीजी की सेवा में रहने लगे । साधु-हृदय तुलसीदासजी उनकी इस दीनता पर प्रसन्न हुए और उन्हे वर माँगने को कहा। तब रविदत्त ने वर माँगा की आप काशीपुरी छोडकर अन्यत्र चले जाइए।
गोस्वामीजी वचनबद्ध थे अतः विवश होकर और शिवजी को प्रेमोपालम्भ देकर दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। पर ऐसे महाभागवत का अपने नगर से चला जाना शिवजी को सहन नही हुआ । अतः गोस्वामीजी कुछ ही दूर गये थे की शिवजी ने प्रकट होकर लौट चलने का आग्रह किया।
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः ….(भाग – २८)