श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
श्रीहनुमानजी की कृपा से गोस्वामीजी को भगवान रघुपती के नित्यलीलाविहार का दर्शन होता रहता। एकदिन रात्री के समय श्रीकामदगिरि की परिक्रमा करने जा रहे थे और मन में सोचते जा रहे थे कि प्रभु के विविध लीला विलासों का तो दर्शन हुआ परंतु अभी मैंने श्रीराजाराम का दर्शन नहीं किया।
हे प्रभो ! वह दिन कब आयेगा, जब मैं आपको श्रीजानकीजी के सहित रत्नसिंहासन पर विराजमान देखूँगा। श्रीभरतलाल छत्र लिये होंगे, श्रीलक्ष्मणलालजी के हाथ में चँवर होगा और श्रीशत्रुघ्नलालजी व्यजन ढुँराते होंगे। श्रीहनुमानजी श्रीचरण कमल की सेवा में संलग्न होंगे। सुग्रीव, विभीषण अंगद आदि परिकर विविधायुधों से सुसज्जित होकर अगल बगल खडे होंगे। प्रजाजन निरंतर जयजयकार की ध्वनी कर रहे होंगे और मैं आपकी आरती उतार रहा होउँ। इसी भाव में डूबे हुए परिक्रमा कर रहे थे की अचानक उन्हें रामलीला का वहीं राजतिलक का दृश्य दिखाई पडा। जो जो भाव उठे थे वही परिदृश्य सामने उपस्थित था।
श्रीगोस्वामीजी उस अनिर्वचनीय शोभा, समाज और सुख को देखकर मुग्ध हो गए। हृदय हुलसाया, समीप चले गये तो उस समय अभिषेकोपरान्त आरती हो रही थी। गोस्वामीजी ने भी आरती उतारी और प्रणाम तथा परिक्रमा करके उस झाँकी को हृदय में बसाकर पुनः परिक्रमा पथ पर आ गए।
कुटिया पर पहुँच कर इन्होंने भक्तों से आज की अद्भुत रामलीला की बहुत सराहना की। कई एक तो सुनते ही तुरंत दौड पड़े स्वयं भी दर्शन करने के लिए। परंतु पूरी परिक्रमा घूम आए, सबसे पूछे, लेकिन कहीं भी रामलीला का पता नहीं लगा। अंततोगत्वा पुनः लौटकर कुटी पर आ गये और उन्होंने तुलसीदासजी से सब बात कही, तब तो गोस्वामीजी को समझते देर नहीं लगी की वह लीलाभिनय नहीं था, बल्कि वास्तविक लीला थी ।
प्रभुकृपा विचारकर गद्गद हो गये। श्रीहनुमानजी से प्रथम दर्शन के समय माँगा हुआ वरदान ‘दीजै राम भूप रूप’ आज पुरा हो गया ।
इस प्रकार कुछ दिन चित्रकूट में रहकर फिर गोस्वामीजी काशी पहुँचे और वहाँ प्रह्लाद घाटपर एक ब्राह्मण के घर निवास किया। भगवान विश्वनाथ का दर्शन कर हृदय में आनंद उमडा।
यहीं पर उनकी कवित्वशक्ती कुछ प्रबल हो गयी तो वहीं पर देववाणी संस्कृत में श्रीरामचरित लिखना प्रारंभ किया। परंतु ये बडे आश्चर्य की बात थी की जितना भी दिन भर लिखते रात में वह सब गायब हो जाता।
सुरक्षा के अनेक यत्न किए गए पर सब व्यर्थ। यह क्रम लगातार सात दिन तक चलता रहा। आठवें दिन भगवान शिव ने स्वप्न में आकर आदेश दिया की तुम अपनी बोल चाल की ही भाषा में काव्य रचना करो। इतने में ही उनकी नींद उचट गई। वें उठकर बैठ गए। उनके हृदय में स्वप्न के शब्द गूँज रहे थे। इतने में ही भगवान शिव और माता पार्वती प्रकट हो गये।
तुलसीदासजी ने साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया । भगवान शिवने पुनः कहा ‘आप लोकभाषामे काव्यरचना करों। संस्कृत के पचडे में मत पडो। जिससे सबका कल्याण हो वहीँ करना चाहिए। बिना सोचे विचारे अनुकरण करने की आवश्यकता नही है।
श्रीहनुमानजी के मार्गदर्शनानुसार अयोध्या में जाकर काव्य रचना करो । मेरे आशिर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलदायिनी होगी।’ ऐसा कहकर उमा महेश्वर अंतर्धान हो गये । गोस्वामीजी उनकी कृपा और अपने सौभाग्य की प्रशंसा करते हुए अयोध्या जा पहुँचे।
🌸🙏रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु
क्रमशः ....(भाग - २०)
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷