श्वेता पुरोहित। (रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसी दास जी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधव दास जी विरचीत मूल गोसाई चरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ )
गतांक से आगे –
प्रेत ने आगे बताया की हनुमानजी रामकथा सुनने कोढी के वेष में आते हैं, आप सुअवसर देखकर उनके चरण पकडीए। उनकी कृपा से आपको अवश्य भगवान श्रीरामञका दर्शन हो जाएगा।’
श्रीमद गोस्वामी तुलसी दास जी ने प्रेत का बडा उपकार माना, अतः कृपा करके उन्होंने भगवान का नाम सुनाकर उसका प्रेतयोनि से उद्धार कर दिया और स्वयं आज सबसे पहले जाकर व्यासासन पर विराजमान हो गए। और सचमुच ही कोढी के वेष में हनुमानजी सभी श्रोताओं से पहले आकर बैठ गए। कथा समाप्ति के बाद जब सब लोग चले गए तो लाठी टेकते हुये जंगल की ओर चल पडे। गोस्वामीजी भी चुपचाप उनके पीछे पीछे चल पडे।
जब एकदम निर्जन स्थान में (जिसे वर्तमान में संकटमोचन कहते है) पहुँचे तो हनुमानजी के चरण पकड लिए। यद्यपि हनुमानजी ने बहुत मना किया, समझाया बुझाया, घृणा की बात कही ‘राम राम ! मै तो कोढी हूँ, मेरे अंग से पीब रक्त बहता है, आपके शरीर में लग जायगा, आप महात्मा हैं, आपकी कंचन सी काया दूषित हो जाएगी।
पर गोस्वामीजी फिर भी नही माने तो फटकार भी सुनायी परंतु गोस्वामीजी तो जान चुके थे, पा चुके थे अपने सर्वस्व को अतः लाख कहने पर भी चरण नही छोडे, तब तो श्रीपवनतनय को प्रगट होकर प्रत्यक्ष दर्शन देना ही पडा।
हेमशैलाभदेह अपने दिव्य स्वरुप में प्रगट हो गए। अद्भुत रुप को देखकर गोस्वामीजी ने स्तुति की। श्रीप्रियादासजी अगली कथा कहते है-
मांगी लीजै वर कही दीजै राम भूप रुप अतिही अनूप नित नैन अभिलाखिये ।
कियौ लै संकेत वाही दीन ही सों लाग्यौ हेत आई सोई समै चेत कब छबि चाखिये ।
आए रघुनाथ साथ लछिमन चढे घोरे पट रंग बोरे हरे कैसे मन राखिये ।
पाछे हनुमान आये बोले देखे प्रान प्यारे नेकु न निहारे मैं तो भले फेरि भाखिये ॥;
स्तुति से प्रसन्न होकर हनुमानजी बोले ‘अच्छा ! जो चाहो सो वरदान माँग लो।’ तब गोस्वामीजी ने बडी चतुराई से वर माँगा – ‘दीजै राम भूपरुप’ क्योंकि श्रीराम के भूपरुप (राजा रूप) दर्शन में तो सभी आ गए –
श्रीजानकी अंबा और छत्र चामर आदी धारण कर सभी भाई और नित्य दास स्वयं हनुमानजी। सो एकही वरदान में सबके दर्शन माँग लिए। तब हनुमानजी ने इनको चित्रकूट जाने की आज्ञा दी और आश्वासन दिया की आपको वहाँ अवश्य प्रभु के दर्शन होंगे।’ तब गोस्वामीजी ने ‘अब चित चेत चित्रकूटहिं चलू’ का राग आलापकर चित्रकूट को प्रस्थान किया।
तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीझ भौंमि पड़ा जामें सभी उल्टा सीधा बीज
सियावर रामचन्द्र की जय
पवनसुत हनुमान की जय
तुलसीदास हो जय