श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
इस प्रकार गोस्वामीजी अयोध्या में रहने लगे। वे एक समय दूध पीते थे। भगवान का भरोसा था। संसार की चिंता उनका स्पर्श नहीं कर पाती थी।
कुछ दिन यों ही बीते। फिर संवत १६३१ की रामनवमी मंगलवार को प्रायः वैसा ही योग जुट गया था, जैसा त्रेता में रामजन्म के दिन था। मंगलमुहूर्त का विचार कर उस दिन प्रातःकाल मंगलमूरति श्रीहनुमानजी ने प्रकट होकर गोस्वामीजी का अभिषेक किया और विश्व कल्याणार्थ उनको आशिर्वाद के साथ श्रीरामचरितमानस के प्रणयन की आज्ञा दी।
तत्पश्चात शिवजी, पार्वती, गणेश, सरस्वती, नारद और शेष ने प्रकट होकर गोस्वामीजी को आशीष दिए। सब की वंदना कर गोस्वामीजी ने रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की-
संवत सोरह सै इकतीसा ।
करौं कथा हरि पद धरि सीसा ॥
नौमी भौमवार मधुमासा ।
अवधपुरी यह चरित प्रकासा ॥
जेहिं दिन राम जनम श्रुति गावहि ।
तिरथ सकल तहाँ चलि आवहि ॥
मानस की रचना के समय जब कभी गोस्वामीजी को कठीनाई का अनुभव होते ही कृपामुर्ति श्रीहनुमानजी स्वयं प्रकट होकर उनकी सहायता किया करते थे। दो स्थल तो अत्यंत प्रसिद्ध है-
१. श्रीशंकरजी के तप के समय कामदेव के व्यापक प्रभाव का वर्णन करते हुए तुलसीदासजी ने लिखा-
‘धरी न काहूँ धीर सब के मन मनसीज हरे ।’
आधा सोरठा लिख लेनेपर चिंता हुई ।
‘काहूँ’ और ‘सब के’ में तो श्रीनारदादि देवर्षि और विरक्त भक्त भी आ गये, जिन्हें कामविकार स्पर्श भी नही करता। श्रीगोस्वामीजी ने आंजनेय का स्मरण करते ही उन्होंने प्रकट होकर सोरठे का दूसरा चरण पुर्ण कर दिया-
‘जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ ।’
२. धनुष यज्ञ का वर्णन करते समय गोस्वामीजी ने सोरठा लिखा-
‘संकर चापु जहाजु
सागरु रघुबर बाहुबल ।
बूड सो सकल समाज’
गोस्वामीजी रुके ‘सकल समाज’ में तो महर्षि विश्वामित्र और धनुष को स्पर्श भी न करनेवाले हरिभक्त राजा और न जाने कितने लोग आ गये । अब भी गोस्वामीजी ने प्रार्थना की और मारुतनंदन प्रकट हो गये और सोरठा पूरा किया-
‘चढा जो प्रथमहिं मोहबस’
इस प्रकार दो वर्ष सात महिने छब्बीस दिन के बाद श्रीरामचरितमानसकी रचना पुर्ण हो गयी। यह मार्गशिर्ष शुक्ला पंचमी का अर्थात रामविवाह का दिन था। देवताओंने सातों काण्डों के पुर्ण होने पर जयजयकार के साथ पुष्पवर्षा की।
श्री गणेशजी ने प्रकट होकर अपनी दिव्य लेखनी से रामचरितमानस की पाँच प्रतियाँ लिखी और उन्हें देवलोक ले गये। सभी ने पूज्य कवि की वंदना की-
बँदउँ तुलसी के चरन जिन्ह किन्हो जग काज ।
कलि समुद्र बूडत लख्यो प्रगटेउ सप्त जहाज ॥
ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद सरस्वतीजी का कथन है-
यह कथा पाखंडीयोंके छल प्रपंचको मिटानेवाली है ।
पवित्र सात्त्विक धर्म का प्रचार करनेवाली है ।
कलिकालके पाप-कलाप का नाश करनेवाली है ।
भगवत्प्रेम छिटकानेवाली है ।
संतों के चित्त में भगवत्प्रेम की लहर पैदा करनेवाली है ।
भगवत्प्रेम शिवजी के अधीन है यह रहस्य बतानेवाली है ।
श्रीरामचरितमानस क्या है, इस बात को सभी अपने अपने भाव के अनुसार समझते एवं ग्रहण करते है। परंतु अब भी इसकी वास्तविक महिमा का स्पर्श विरले ही पुरुष कर सके होंगे।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः ….(भाग – २४)