श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
संत के साथ जाकर गोस्वामीजी ने देखा की सचमुच वह पुनीत स्थान वटवृक्षों की अनुपम शोभा से संयुक्त है ।
उन वृक्षों के बीच मे एक विशाल वटवृक्ष है। उसके मूल मे सुंदर वेदिका बनी हुई है और उस वेदिका पर एक अग्नि के समान तेजस्वी संत सिद्धासन में बैठे हैं।
स्थान देखकर गोस्वामीजी का मन लुभा गया। अतः वहीं रहने का निश्चय करके उन संत के समीप गये तो वे जयजयकार करते हुए अपने आसन से उठ खडे हुए और प्रणाम करके, परिचय पाकर बड़े ही प्रसन्न होकर हाथ जोडकर बोले –
‘महाराज ! मेरे सदगुरुदेवजी परमधाम जाते समय मुझसे कह गये हैं की यह परमसिद्ध स्थल है। इन वृक्षों को देवताओं के धनाध्यक्ष कुबेर ने लगाया है । तुम यहीं पर निवास करना।
कुछ दिन बितने पर यहाँ आदिकवि श्रीवाल्मीकिजी के अवतार गोस्वामी तुलसीदासजी आयेंगे और श्रीहनुमानजी की कृपा से श्रीरामसुयश का वर्णन करेंगे ।
जब वे यहाँ आयेंगे तो तुम यह कुटी और बगीचा उनको सौंपकर मेरे पास आ जाना। गुरुदेव का यह उपदेश मुझे बहुत ही अच्छा लगा। तबसे मैं आज तक आपके ही दर्शन की प्रतीक्षा में जीवन धारण कर रहा था।
आज मेरे अनंत जन्मों के पुण्यों का उदय हुआ है, श्रीगुरुदेव की कृपा सफलीभूत हुई है, भगवान मेरे अनुकूल हुए है जो आपका दर्शन मिला। अब तो आप यहीं विराजमान होकर श्रीराम गुणगान किजिये।
मैं अब अपने गुरुदेव के पास जाता हूँ।’ ऐसा कहकर वे संत गोस्वामीजी को पुनः प्रणामकर कुछ दूर जाकर सिद्धासन में बैठ गये और योगाग्नि में अपना शरीर भस्म कर दिया।
भगवान का यह विचित्र विधान देखकर श्रीगोसाईजी प्रभुकृपा पर बार बार बलिहार गये और सुखपुर्वक वहीं रहने लगे। दृढ संयम के साथ नियमित रूप से भजन पूजन करते हुए दो वर्ष बीत गये।
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः – (भाग- २३)