श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
मीराबाई पत्र में लिखती हैं –
घर के स्वजन हमारे जेते सबन उपाधि बढाई ।
साधु संग अरु भजन करत मोहिं देत कलेस महाई ॥
मीराबाई ने भक्ति की सर्वोच्च अवस्था जिसे प्रेमलक्षणा भक्ति कहा जाता है, प्राप्त की थी। इस बात को मीराबाई के पति कुँवर भोजराज भलीभाँती जानते थे, अतः वे मीराबाई के भक्तिविषयक क्रीयाकलापों में सब प्रकार से सहायता करते थे।
पर एक युद्ध में कुँवर भोजराज वीरगती को प्राप्त हो गये। उनके बाद उनके सौतेले भाई राणा विक्रमजीत सिंहासन पर विराजमान हो गये पर वो मीराबाई के विशुद्ध भक्ति के उच्च स्तर को नही समझ पाते थे। मीराबाई का भजन गाना, भावावेश में नृत्य करना, भक्तों के संग भगवच्चर्चा करना उनको अच्छा नही लगता था, अतः उनका और अन्य परिजनों का मीराबाई की भक्ति में विरोध बढने लगा। इससे त्रस्त होकर मीराबाई लिखती हैं –
हे गोसाईजी ! हमारे घरके जो भी स्वजन हैं, सब लोगों का भक्ति में उपद्रव बढा हुआ है। वे लोग मुझे साधु संग और भजन करते समय मुझे बडा क्लेश देते है। उसमें विरोध करते है।
सो तो अब छूटत नहीं क्योंहूँ, लगी लगन बरियाई ।
बाणपणे में मीराँ कीन्ही गिरधरलाल मिताई ॥
उनकी इच्छा के लिए यदि मै भक्ति को छोडने का विचार करुँ तो ये तो अब किसी प्रकार से छूटनेवाली नही, क्यों की ये लगन बडी बलवती है। क्योंकी बाल्यावस्था से ही मैंने श्रीगिरिधरलाल से मिताई करीं है ।
मेरे मात तात सम तुम हो, हरि भक्तन्ह सुखदाई ।
मोको कहाँ उचित करिबो अब सो लिखिये समुझाई ॥
आप मेरे माता-पिता समान हो। आप हरिभक्तों को सुख देनेवाले हो। अब मेरे लिए क्या करना उचित है वह इस पत्र के उत्तर में लिखकर मुझे समझाइए।
श्रीगोस्वामीजी ने इस पत्र का उत्तर इस पद में लिख भेजा, जो बाद में विनय पत्रिका में भी समाविष्ट हुआ-
जाके प्रिय न राम बैदेही ।
तजिये ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही ॥
जिसको श्रीराम और जानकीजी प्रिय नही लगते, उसे करोडों शत्रुओं के समान मान कर त्याग ही देना चाहिए, चाहे वह अपना अत्यंत ही प्यारा क्यों न हो ।
तज्यो पिता प्रहलाद बिभीषण बंधु भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हि भये मुद मंगलकारी॥
प्रह्लादजी ने अपने पिता को, विभीषणजी ने अपने भाई को, भरतजी ने अपनी माता को, राजा बलिने अपने गुरु को और व्रज गोपियों ने अपने अपने पतियों को भक्ति में बाधक समझकर त्याग दिया, पर ये सभी आनंद और कल्याण करनेवाले हुए ।
जाके प्रिय न राम बैदेही तजिये ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही तज्यो पिता प्रहलाद बिभीषण बंधु भरत महतारी बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हि भये मुद मंगलकारी
क्रमशः… (भाग – २१ )
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
भक्त शिरोमणि मीरा बाई की जय 🙏🌷