ब्रजेश सिंह सेंगर-
धर्म-सनातन में सब जागो , हिंदू ! जागरुक हो जाओ ;
धर्म – युद्ध चल रहा देश में , धर्म – सनातन में आओ ।
जब से धर्म – सनातन छोड़ा , हिंदू लगातार हारा ;
पूरी दुनिया में तुम ही तुम थे , अब तो भारत में भी हारा ।
कायर,कमजोर,नपुंसक-नेता , म्लेच्छों से कितना डरता है ?
हिंदू का धन लूट-लूट कर , उनको जजिया में देता है ।
मंदिर पूरी-तरह लुट रहे , सारी-सम्पत्ति पर कब्जा है ;
सब का सब नाजायज-कब्जा , म्लेच्छों का ही कब्जा है ।
टैक्स-बोझ अन्यायपूर्ण है , केवल हिंदू ही लुटता है ;
हिंदू ! तेरी जान का दुश्मन , अब्बासी-हिंदू नेता है ।
जब से हिंदू ! तू धर्म को भूला ,अब्बासी-हिंदू को नेता माना ;
उसको हृदय-सम्राट बनाकर , लिख लिया मौत का परवाना ।
सर्वश्रेष्ठ है धर्म-सनातन , सबका कल्याण चाहने वाला ;
इसके उलट अब्बासी – हिंदू , हिंदू – धर्म मिटाने वाला ।
कई – सैकड़ा मंदिर तोड़े , गलियारे के नाम पर ;
देवालय टूट बने शौचालय , फर्जी-विकास के नाम पर ।
इस विकास के भेद को जानो , हिंदू का पूर्ण-विनाश है ;
महामूढ़ जितने हिंदू हैं , करते धर्म का नाश हैं ।
महामूढ़ हिंदुओं के कारण , “राम-मंदिर” तक भ्रष्ट हुआ ;
चरित्रहीन-सरकारी-बाबा , राम का कितना अपमान हुआ ?
सरकारी-बाबा का मतलब जानो, स्वार्थी,कुटिल,धूर्त,मक्कार ;
हिंदू – धर्म के ये कलंक हैं , म्लेच्छों और गुंडों के यार ।
हिंदू ! तेरे नेता कैसे हैं ? छुरा पीठ पर मारने वाले ;
केवल अपने लिये ही जीते , हिंदू का खून चूसने वाले ।
नब्बे – प्रतिशत हिंदू – नेता , लगभग बिल्कुल ऐसे हैं ;
कैसे भारत – वर्ष बचेगा ? जब उसके रक्षक ऐसे हैं ।
बहुत बड़ा संकट भारत पर , खासतौर पर हिंदू पर ;
धर्म से दूर जो चले गये हैं , आसन्न-मृत्यु उन हिंदू पर ।
अब सोने का समय नहीं है और नहीं है रोने का ;
“विष्णुकृपा” से बच सकते हो , सहस्त्रनाम को जपने का ।
“विष्णु-सहस्त्रनाम” श्रद्धा से , नियमित इसका जाप करो ;
चमत्कार होगा जीवन में , अपनी रक्षा आप करो ।
धर्म उन्हीं की रक्षा करता , जो करते हैं धर्म की रक्षा ;
परमसत्य सिद्धांत यही है , निश्चित पाओगे पूर्ण सुरक्षा ।
धर्म से दूरी ही कमजोरी , कैसे विजय तुम्हें मिल सकती ?
दूर करो अपनी कमजोरी , सर्वत्र विजय तब सदा ही मिलती ।
“जय सनातन-भारत”