रामेश्वर मिश्र पंकज। तुफैल चतुर्वेदी द्वारा हनुमान चालीसा को हल्की पुस्तक कहने पर ,राजकिशोर सिन्हा जी द्वारा उनके बचाव किए जाने पर सिन्हा जी के लिए की गई टिप्पणी:-
आदरणीय राजकिशोर जी,
आप सब लोग इस विषय में मूलभूत बात को बिल्कुल नहीं समझ रहेहैं। स्वामी दयानंद जी की बहुत सी बातें हैं जो शेष सनातन धर्मावलंबियों को अटपटी और कई बार अनुचित लगी। वह सब इसलिए सहन की गई कि वह सन्यासी थे ,ब्रह्मचारी थे, पवित्र थे और वेदज्ञ थे ।संस्कृत के महान पंडित थे।अगर वह यह सब नहीं होते तो उनकी वह बात नहीं सही जाती और उनका प्रचंड विरोध किया जाता। स्वामी श्रद्धानंद जी पर भी यही निकष लागू होता है। तुफैल चतुर्वेदी ना तो वेदज्ञ हैं, ना ही संस्कृतज्ञ हैं ,ना ही महापंडित हैं, ना ही सन्यासी ।इसलिए वे धर्म के विषय में कोई भी टिप्पणी करने के अधिकारी नहीं है ।
आपस में अपने लोगों से चर्चा कर सकते हैं परंतु सार्वजनिक रूप से सनातन धर्म के अवलंबन कारियों के अन्य समूहों के लिए कुछ भी नहीं कह सकते ।इसका उन्हें कोई अधिकार नहीं है ।यही बात आर्य समाज के अन्य उपदेशकों पर भी लागू होती है ,अगर वह अपनी मर्यादा का अतिक्रमण करें तो। तुफैल चतुर्वेदी राजनीतिक वक्तव्य के कारण निश्चय ही आतंकवादियों के क्रोध का शिकार हो सकते हैं ।उस विषय में सत्य केवल प्रशासन और पुलिस ही बता सकती है ।तुफैल जी अपने बारे में स्वयं जो कहते हैं उसे जाँचने का हम लोगों के पास कोई उपाय नहीं। पुलिस ही जांच करके बता सकती हैं कि उन्हें वस्तुतः कितना खतरा है।
यह मानना कि आतंकवादियों के विरुद्ध कुछ बोलना सनातन धर्म की बहुत बड़ी सेवा है और इसलिए धर्मोपदेश का अधिकार मिल जाता है, यह बहुत बड़ी भ्रांति है । व्यापक हिंदू समाज में सत्य का स्वागत किए जाने के कारण ऐसे कथन करने वाले निश्चय ही लोकप्रिय हो जाते हैं और होना चाहिए और सदा होते रहेंगे ।परंतु वे यह मान लें कि इस के द्वारा कोई विशेष सेवा सनातन धर्म की कर रहे हैं और इसलिए किसी विशेष स्थिति के अधिकारी हैं तो वे सुरक्षा के अधिकारी अवश्य हैं परंतु धर्म के विषय में व्यर्थ कथन के अधिकारी वे नहीं हो जाते ।डाकू से मेरी रक्षा करने वाला कोई भी पहलवान या कोई भी सक्षम व्यक्ति ना तो मेरा गुरु हो जाता ,ना ही मेरे लिए धर्म उपदेश का अधिकारी हो जाता है। वह केवल प्रशंसा और सम्मान के योग्य होता है। इस विषय को अलग-अलग समझना चाहिए।
आतंकवाद के सत्य का उद्घाटन करने के कारण तुफैल चतुर्वेदी सब प्रकार से सम्मान और सुरक्षा के अधिकारी हैं परंतु इसके कारण धर्म के उपदेश के अधिकारी वे नहीं बन जाते ।हो सकता है कि परिस्थितिकी और देशकाल की उन्हें समझ जो बनी है अपने अध्ययन और अपने गुरुओं के मार्गदर्शन से, वह उनके लिए संतोषप्रद हो ।परंतु वह समझ मेरे लिए संतोषप्रद नहीं हो सकती। आर्य समाज के लोगों का सनातन धर्म पर इस तरह बारंबार आघात मेरे लिए सदा ही अक्षम्य अपराध रहा है और मैं उस विषय में कड़े कानून बनाए जाने का सदा समर्थन करता रहा हूं ।
कानून बनाने का समर्थन इसलिए क्योंकि अब राज्य ने अपने हाथ में सब अधिकार ले लिया है ।15 अगस्त 1947 से पहले में किसी कानून के बनाने का समर्थन नहीं करता क्योंकि तब तक हिंदू समाज की सभी संस्थाएं जाति, संप्रदाय,श्रेणी, गण, संघ, परिषद आदि और सभी स्तरों की पंचायत सक्षम थी और अपने क्षेत्र के किसी भी मर्यादा का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को पंचायत में बुलाकर समझाया और आवश्यकतानुसार नियंत्रित किया जा सकता था ।
यह सब अधिकार जवाहरलाल नेहरू और उनके सभी उत्तराधिकारियों ने जिनमें सभी पार्टियों के लोग शामिल हैं, यह अधिकार समाज से छीन लिया है। इसलिए कानून बनाए जाने की मांग मैं करता रहा हूं। स्वामी दयानंद जी के समय हिंदू समाज के पास बहुत शक्ति थी। अब हिंदू समाज के पास वैसी कोई शक्ति नहीं है और हिंदू समाज की शक्ति स्वयं हिंदू घरों में उत्पन्न सभी दलों के नेताओं और सांसदों आदि ने या तो सोच समझकर या अनजाने ही अपने हाथ में ले ली है।इसीलिए हर बात शासन से कहनी पड़ती है और केवल अभिव्यक्ति का अधिकार समाज को है। अभिव्यक्ति के अधिकार के अंतर्गत तुफैल चतुर्वेदी द्वारा हनुमान चालीसा की निंदा किए जाने की तीव्र निंदा की जानी स्वाभाविक है।