देशभक्त भारत की सेना , सदा ही माना संविधान ;
जनता की है पूरी-रक्षक , कुत्सित-नेता का मिटेगा मान ।
कुत्सित-नेता धर्म का दुश्मन , देश का दुश्मन-राष्ट्र का दुश्मन ;
चरित्रवान अनुशासित सेना , बच न सकेगा कोई दुश्मन ।
अपने पापों के दलदल में , डूब रहा है कुत्सित-नेता ;
जितने हाथ-पांव मारेगा , उतना ही डूबेगा कुत्सित-नेता ।
अब्बासी-हिंदू ही कुत्सित-नेता , देश मिटाने आया है ;
इतना धोखा कभी न खाया , जितना हिंदू ! ने अब खाया है ।
इससे बड़ा क्या धोखा होगा ? अपना विध्वंसक रक्षक माना ;
हिंदू-जीवन में घोल रहा विष , ऐसे जहर को अमृत माना ।
बहुसंख्यक हिंदू ! समझ चुका है, धर्म में आंखें खोल चुका है ;
बीस-प्रतिशत हिंदू ! महामूर्ख है , समझो गर्दन कटा चुका है ।
चार-जून के बाद जगेंगे , अब्बासी-हिंदू को तब समझेंगे ;
लेकिन इससे पहले ये सब , अपना सब-कुछ गंवा चुकेंगे ।
खलनायक माने जायेंगे , धन – सम्मान सभी जायेगा ;
अब्बासी-हिंदू का जो लगुवा-भगुवा , जेलों में सड़ जायेगा ।
देशद्रोह करने वालों को , मृत्यु-दंड भी मिल सकता है ;
न्याय का शासन आने वाला है , ये निर्णय हो सकता है ।
अब्बासी-हिंदू का अहंकार जो , मिट्टी में मिल जायेगा ;
मृत्यु-दंड से बच न सकेगा , संगी-साथी भी पायेगा ।
धीरे-धीरे समय आ रहा , धर्म का सूरज चमकेगा ;
बहुत शीघ्र ही देश की सत्ता , “एकम् सनातन भारत” पायेगा ।
चरित्रवान जो देशभक्त हैं , धर्म – सनातन में आयेंगे ;
“एकम् सनातन भारत” में आकर , भारत – वर्ष बचायेंगे ।
गहरी काली – रात जायेगी , अब सूर्योदय नहीं रुकेगा ;
चाहे जितना जोर लगा ले , अब्बासी-हिंदू नहीं बचेगा ।
एक-एक कर्मों का फल , हर हाल में इसे भुगतना होगा ;
सिद्धांत कर्म का सदा अटल है,मर्मान्तक परिणाम ही भोगेगा।
अंतिम-सीमा तक किया है इसने , धर्मद्रोह व देशद्रोह ;
अंतिम-दंड भी ये पायेगा , ताकि न हो फिर ऐसा द्रोह ।
इसका बीज कुचलना होगा , ताकि कभी न अंकुरित हो ;
जड़-मूल सहित नष्ट करना है, तब भारत कभी न शापित हो ।
चरित्रहीनता बीज है इसका , अब्राहमिक खाद व पानी ;
धर्म-सनातन में ही क्षमता , रोक दे इनका दाना-पानी ।
“एकम् सनातन भारत” दल ही , करेगा इसकी पूर्ण-व्यवस्था ;
“राम-राज्य” हमको पाना है , शासन की सर्वोच्च-अवस्था ।
“जय सनातन-भारत”, रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”