ब्रजेश सिंह सेंगर
पापी ने अपने पापों से , काशी को गंदा कर डाला ;
हिंदू – जनता ने इसी वजह से , इसको नंगा कर डाला ।
अब तक का सबसे बड़ा जो धोखा , हिंदू ! ने इससे खाया ;
देवालय टूट बने शौचालय , गंगा को गंदा करवाया ।
उदासीनता थी हिंदू ! की , परिणाम सामने आया है ;
राम-मंदिर तक भ्रष्ट है पूरा , म्लेच्छों को घुसवाया है ।
दुष्परिणाम भोगना होगा , पापी के संग हिंदू ! को भी ;
अंधेर – नगरी बनेगा भारत , मिटेगा चौपट – राजा भी ।
दलदल में जब मानव गिरता , नीचे तल तक जाता है ;
कहीं बीच में नहीं ठहरता , पूरी तरह डूब जाता है ।
ऐसा ही ये पापी – राजा , गंदे – दलदल में डूब चुका है ;
जो भी इसे सहारा देता , उसका सूरज भी डूब चुका है ।
चरित्रहीन ,बेईमान ,स्वार्थी ,कायर ,कुटिल ,कपूत हैं जितने ;
सब के सब इसके साथी हैं , देश के तोड़ दिये सब सपने ।
पूरी की पूरी चोर – मंडली , ये गिरोह है गुन्डों का ;
देश लूट कर मोटे होते , नंग – नाच मुस्तंडों का ।
बेशर्मी की हदें पार हैं , देश का गौरव मिटा दिया है ;
देश की रक्षा अस्त-व्यस्त है , सेना को दुर्बल बना दिया है ।
रेजीमेंटल – सिस्टम तोड़ा , अग्नि-वीर को ले आया ;
भारतवर्ष नष्ट करने को , गजवायेहिंद लेकर लाया ।
जल्दी ही पापी नहीं हटा तो , भारतवर्ष टूट सकता है ;
अंग्रेज – मुगल जो कर न पाये , ये पापी कर सकता है ।
जिन्हें प्यार है लोकतंत्र से , संविधान से , भारत से ;
ऐसे सारे भारतवासी ! देश बचायें इस पापी से ।
संविधान-सम्मत हर-रास्ता , हिंदू ! तुझको अपनाना है ;
अपने घर से बाहर निकलो , कमजोरी सभी त्यागना है ।
“जय सनातन-भारत”, रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर (विधिज्ञ)