ब्रजेश सिंह सेंगर-
“राम-राज्य” हमको मिल सकता, बस चरित्रवान बनना होगा ;
धर्म-सनातन में आकरके , अब्बासी-हिंदू से बचना होगा ।
सारे हिंदू – नेता अब तो , सही राह पर आ जायें ;
सौ – सौ चूहे खा ही चुके हैं , अब तो तीरथ करने जायें ।
क्यों बिल्ली से बदतर हो तुम ? अब तो मानव बन जाओ ;
पूरा देश कर दिया चौपट , अब तो मिटता देश बचाओ ।
जब भारत ही मिट जायेगा , सोचो तब तुम कहाॅं जाओगे ?
जिसको भी तुमने नर्क बनाया , उसको तुम ही तो भोगोगे ।
सीधा-सीधा फार्मूला है , तनिक सी अपनी बुद्धि लगाओ ;
सिद्धांत कर्म का सदा अटल है , काहे तुम इससे बच जाओ ?
राजनीति को खेती समझो , जैसी चाहो फसल उगाओ ;
जो बोओगे वो ही पाओगे , कई गुना पापों को पाओ ।
प्रारब्ध असीमित नहीं तुम्हारा , कभी तो गड्ढे में जाओगे ;
जब भी पुण्य-कार्य क्षय होंगे , पापों का फल पाओगे ।
एकमात्र ये नहीं है जीवन , लाखों – जीवन होते हैं ;
पाप-पुण्य के एक-एक फल , कई-जन्मों तक मिलते हैं ।
दो-जीवन के बीच में जानो , सूक्ष्म-जगत भी होते हैं ;
सौ – गुना कर्मों का फल , सूक्ष्म – शरीर को मिलते हैं ।
कोई भी न बचा कर्म से , श्राद्ध – कर्म बेमानी है ;
बोई फसल काटनी होगी , कहीं न कुछ आसानी है ।
कोई सिफारिश नहीं चलेगी , धन-दौलत सब धरी रहेगी ;
तेरी सारी पापों की दौलत , किसी काम न आयेगी ।
सबसे निकृष्ट अब्बासी – हिंदू है , धर्म मिटाना चाह रहा ;
चरित्रहीन , पापी , व्यभिचारी , ईश्वर बनना चाह रहा ।
इसे चाहिये गंदी – सत्ता , राम – नाम को बेचना चाहे ;
राम-मंदिर तक भ्रष्ट कर दिया , हिंदू-धर्म मिटाना चाहे ।
धर्म-सनातन अजर-अमर है , किसमें दम है मिटा सके ?
इसे मिटाने वाले मिट गये , बाल बराबर खिसका न सके ।
ओ ! अब्बासी-हिंदू सुन ले , तू बहुत बुरी गति पायेगा ;
जितने सारे पाप किये हैं , गिन-गिन कर बदला पायेगा ।
हिंदू-जागरण शुरू हो चुका , पूरा-समाज जल्दी जागेगा ;
बेहतर है कि तौबा कर ले , क्योंकि अब न बच पायेगा ।
तेरी सारी फंदेबाजी , तेरे गले ही पड़ने वाली ;
मौत से बदतर जीवन होगा , घड़ी शुरू होने वाली ।
उल्टी-गिनती भी खत्म हो रही , जल्दी ही जीरो आयेगा ;
जितने भी हैं तेरे आका , कोई काम न आयेगा ।
“जय सनातन-भारत”