श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
गंग सकल मुद मंगल मूला सब सुख करनि हरनि सब सूला कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा।
रामु बिलोकहिं गंग तरंगा
इस प्रकार रामचरितमानस को प्राकृत ग्रंथ बताकर उसकी लोकप्रियता घटाने के पण्डितों के सारे प्रयत्न जब निष्फल हो गये, तो उन मुर्खों ने सोचा की अब तो ग्रंथ को चुराकर नष्ट करने से ही काम बनेगा।
उन्होंने काशी के दो कुप्रसिद्ध चोर निधुआ और सिखुआ (मुझे लगता है ये दोनो वैकुंठ के द्वारपाल जय और विजयही होंगे जो भगवान की प्रत्येक लीला में खल भूमिका करते है) को कुछ द्रव्य का लोभ देकर ग्रंथकी चोरी करने भेजा ।
इस प्रसंग को भक्तिरसबोधिनीकार प्रियादासजी लिखते है-
आये निशि चोर चोरी करन हरन धन, देखे श्याम घन, हाथ चाप सर लिये हैं ।
जब जब आवैं बान सांधि डरपावैं एतौ अति मडरावै, ऐपै बली दूरि किये है ॥
भोर आय पूछैं अजू साँवरो किशोर कौन सुन करि मौन रहे आंसू डारि दिये है ।
दई सो लुटाय जानी चौकी राम राय दई लई उन दिक्षा शिक्षा शुद्ध भये हिये है ॥
चोर निधुआ और सिखुआ रात्री के समय जो गोस्वामीजी का प्राणधन है उस रामचरितमानस को चुराने उनकी कुटिया पर पहुँचे तो देखा की एक श्यामघन और एक गौरकिशोर युवक हाथ में धनुष बाण लिये पहरा दे रहे है ।
चोरों ने बहुत दाँव घात लगाई, परंतु उनकी एक न चली। चोर आश्रम के चारों ओर चक्कर काटने लगे। जब भी जिधर भी गये, उन्हे युगलकुमार धनुष-बाण ताने दिखाई पडे। चोर आये थे पुस्तक की चोरी करने पर खुद उन्हीं की चोरी हो गई।
उन्होंने कुछ देर तक तो चोरी का उपाय किया परंतु बाद में तो युगलकुमारों का दर्शनमात्र उनका प्रयोजन रह गया। प्रातः होते ही चोर घर चले गये। परंतु घर पर उनका मन नहीं लगा।
कुमारों को देखे बिना उनको चैन नहीं पड रहा था। अतः भागे भागे कुटि पर आये और श्रीतुलसीदासजी से उन कुमारों का परिचय-पता पूँछने लगे। उनकी वाणी सुनकर, उनकी दशा देखकर गोस्वामीजी समझ गये कि इनके उपर प्रभु की कृपा हो गई है ।
उनकी आँखों मे प्रेमाश्रु छलछला आये, हृदय भर आया, गदगद स्वरसे बोले- भैया ! तुम लोग धन्य हो, जो तुम्हें भगवान का दर्शन हो गया।
जब निधुआ सिखुआ को पता चला की वे साक्षात श्रीराम लक्ष्मणजी थे तो सहसा कह उठे – अहो ! कैसे भक्तवत्सल हैं भगवान, वो अपने भक्त के यहाँ पहरेदार भी बन गए! चोरों का हृदय-परिवर्तन हो गया। कुकर्म छोडकर गोस्वामीजी से उपदेश ग्रहण कर सदा के लिए श्रीरामभजन में लग गए।
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः ….(भाग – २६)