श्वेता पुरोहित-
लंकापति रावण के अत्याचार से सारा ब्रह्मांड त्रस्त था। इंद्र आदि देवगण भी उससे भयभीत थे। पर्वताकार कुंभकरण जब अपनी छह महीने की निद्रा पूर्ण करके उठता था, तो धरती के सभी प्राणी डर से थर-थर काँपने लगते थे। रावण और कुंभकरण भगवान् शिव के भी भक्त थे। रावण ने तो शिव जी को अपना शीश भी काटकर चढ़ाया था और ब्रह्मा जी से नर और वानर के अतिरिक्त किसी से भी न मरने का वरदान प्राप्त किया था। नर और वानर को तो वह अपने बाहुबल के आगे कुछ भी नहीं समझता था।
रावण की क्रूरता से मुक्ति दिलाने के लिए देवताओं ने भगवान् शिव से प्रार्थना की। भगवान् शिव ने पापियों का नाश करने के लिए अंजनी के पुत्र हनुमान के रूप में जन्म लिया।
भगवान् महादेव ही भगवान् विष्णु के रामावतार की सहायता के लिए महाकपि हनुमान बनकर अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतरित हुए। यही कारण है कि हनुमान जी को रुद्रावतार भी कहा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, विवाह के बहुत दिनों बाद भी जब अंजनी को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ तो उन्होंने कठोर तप किया। मतंग मुनि ने उन्हें वायुदेव को प्रसन्न करने को कहा। उनके तप से प्रसन्न होकर वायुदेव ने उन्हें दर्शन देकर वरदान माँगने को कहा। अंजनी ने उत्तम पुत्र का वर माँगा। वायुदेव ने उनके पिछले जन्म का स्मरण कराते हुए कहा, ‘‘हे अंजनी! तुम्हारे गर्भ से एक अत्यंत बलशाली एवं तेजस्वी पुत्र जन्म लेगा। बल्कि भगवान् शिव ही ग्यारहवें रुद्र के रूप में तुम्हारे गर्भ से अवतरित होंगे। पिछले जन्म में तुम पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं और मैं तुम्हारा पति था, परंतु ऋषि-श्राप के कारण हमें वियोग सहना पड़ा और तुम इस जन्म में अंजनी के रूप में इस धरती पर आई हो, इस नाते मैं तुम्हारे होनेवाले पुत्र का धर्म-पिता कहलाऊँगा तथा तुम्हारा वह पुत्र पवनपुत्र नाम से भी तीनों लोकों में जाना जाएगा।’’
रावण का नर और वानर के अतिरिक्त किसी से भी न मरने का वरदान भी एक कारण है कि विष्णु जी ने राम अवतार लिया और तब उन्हें रावण के संहार हेतु हनुमान रूपी शिव जी और वानर सेना का सहयोग प्राप्त हुआ था ।
हर हर महादेव 🔱 🚩
जय श्री राम 🙏 🚩
जय हनुमान 🙏🚩