एक श्रोता का प्रश्न – कोई व्यक्ति भक्तिरस में डूबता है और दुनिया से उदास होता है तथा मौन रहना चाहता है, एकान्त में रहना चाहता है, तो लोग कहते हैं कि यह पागल हो गया है !
स्वामीजी का उत्तर – बहुत अच्छी बात है ! लोग पागल कहें तो बहुत ही आनन्द की बात है ! लोग अच्छा समझें तो उसमें नुकसान है ! लोग पागल समझें तो उसमें नुकसान नहीं है, फायदा-ही-फायदा है ! कोई आदमी पास में नहीं आयेगा, भजन में बाधा नहीं देगा । इस मार्ग में तो अकेले रहने में बहुत मौज है !
- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज-
बहुत-से लोग अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ते हैं – ठीक है। शान्ति से बैठकर भजन नहीं करते। अच्छी पुस्तकें पढ़ने से बहुत लाभ नहीं है। जो बहुत पुस्तकें पढ़ता है, वह बातें करता है। जो बहुत पुस्तकें पढ़ता है, उसका शब्द ज्ञान बढ़ता है। शब्द ज्ञान जब बहुत बढ़ जाता है तो वह साधु-सन्तों की भी परीक्षा करता है। बहुत पढ़ा-लिखा कथा में जाता नहीं है। कदाचित् जाय तो वह अकड़ में ही बैठकर कथा सुनता है- मैं सब जानता हूँ। बातें करता है-दो वर्ष पहले एक महाराज आये थे, वह बहुत अच्छी कथा करते थे।….. सभी महाराज अच्छे हैं। आप सभी लोग भी अच्छे हैं। अपने मन को कभी देखा है-मेरा मन कैसा है ? मानव जगत् को देखता है, अपने मन को नहीं देखता है। मानव मन को देखे तो खबर पड़े कि मेरा मन जितना बिगड़ा हुआ है, उतना इस संसार में कुछ भी बिगड़ा हुआ नहीं है। जो बहुत पुस्तक पढ़ता है, वह चर्चा करता है। शान्ति से बैठकर भक्ति नहीं करता। मानव-जीवन में बहुत-सा समय पढ़ने में जाता है, बहुत-सा समय बातें करने में जाता है। मानव भक्ति नहीं करता है।