श्वेता पुरोहित। रावण को सीता जी का उपदेश
यदा विनाशो भूतानां दृश्यते कालचोदितः।
तदा कार्ये प्रमाद्यन्ति नराः कालवशं गताः ॥ १६॥
मां प्रधृष्य स ते कालः प्राप्तोऽयं राक्षसाधम।
आत्मनो राक्षसानां च वधायान्तःपुरस्य च ॥ १७॥
श्री वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड ५६ सर्ग
अर्थात्:
सीता जी रावण से कहती हैं – जब काल की प्रेरणा से प्राणियों का विनाश निकट आता है, उस समय मृत्यु के अधीन हुए जीव प्रत्येक कार्य में प्रमाद करने लगते हैं ॥ १६ ॥
‘अधम निशाचर ! मेरा अपहरण करने के कारण तेरे लिये भी वही काल आ पहुँचा है। तेरे अपने लिये, सारे राक्षसों के लिये तथा इस अन्तःपुर के लिये भी विनाश की घडी निकट आ गयी है।। १७॥
प्रमाद का शब्दकोष में अर्थ :
१. किसी प्रकार के मद या नशे में होने की अवस्था या भाव।
२. वह मानसिक स्थिति जिसमें मनुष्य अभिमान, असावधानता, उपेक्षा, प्रभुत्व, भ्रम आदि के कारण बिना कुपरिणाम का विचार किये कोई अनुचित काम, बात या भूल कर बैठता है।
३. उक्त प्रकार की मानसिक अवस्था में की जानेवाली कोई बहुत बड़ी भूल।
४. दुर्घटना।
५. बेहोशी। मूर्च्छा।
६. अंतःकरण की दुर्बलता।
७. उन्माद। पागलपन।
८. योग-शास्त्र में समाधि के साधनों की ठीक तरह से भावना न करना या उन्हें ठीक न समझना।
सत्य ही कहा गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि
जय सिया राम