श्वेता पुरोहित। श्री कृष्ण ने भागवत पुराण में कहा है जो मनुष्य इसका पाठ करेगा उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं होगा वो मुझे प्राप्त करेगा कथा सुनने से भी कृष्ण प्रिय बन जाएंगे । गजेन्द्र मोक्ष कथा माहात्म्य यह एक ऐसी कथा है जिसके भावपूर्वक सुनने से ही आँखे अश्रुपूरित हो जाएगी । इस कथा में करुणरस और भक्तिरस का समन्वय है यह उत्तम स्तोत्र ( कथा ) श्रीमद भागवत महापुराण के अष्टम यानी आठवे स्कन्द के दूसरे, तीसरे और चौथे अध्याय में वर्णित है इस स्तुति को गजेंद्र अपने ह्रदय में भगवान् को स्थिर कर मन में ही स्तवन करता है।
कब और कैसे करे इसका पाठ ?
इस स्तवन का पाठ ब्राह्ममुहूर्त में भगवान् श्री हरी के सामने या कही पर भी भाव पूर्वक कर सकते है | इसका निरंतर स्तवन करने से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है,सभी कष्टों का निवारण हो जाता है, दुःस्वप्नो का विनाश हो जाता है ,सभी प्रकार के विघ्नो का विनाश हो जाता है और मृत्यु पर्यन्त कभी नरक में नहीं जाता ऐसा स्वयं भगवान् का वचन है |
एक बार त्रिकूट नामक एक सुंदर पर्वत था। इस पर्वत की सोने, चाँदी और लोहे से बनी तीन ऊँची चोटियाँ और इसकी कई छोटी चोटियाँ पेड़ों, झाड़ियों और लताओं से ढकी हुई थीं, जो रत्नों से आच्छादित थीं, यह पर्वत देखने में बहुत ही सुंदर था।
सागर के पास स्थित त्रिकूट पर्वत, जिसकी तलहटी दूध सी लहरों धोती थी, देवता; सिद्ध, चारण, गंधर्व और विद्याधर, अक्सर उन सुंदर पहाड़ों पर विचरण के लिए आते थे। पहाड़ की घाटियॉं, झीलें और जंगल देवताओं के संगीत और हँसी से गूंजते थे। कई जानवर और पक्षी भी उन जंगलों और घाटियों में रहते थे।
उनमें हाथियों का राजा गजेन्द्र भी रहता था। गजेंद्र पराक्रमी, बलवान और शक्तिशाली था और शेर और बाघ जैसे जंगली जानवर उससे डरते थे और उसके झुंड से दूर रहते थे। जहाँ तक छोटे जानवरों की बात है, वे उसकी सुरक्षा में आनन्दित थे, क्योंकि जब तक वह आसपास था तब तक वे सुरक्षित और स्वतंत्र महसूस करते थे।
एक दिन, गजेन्द्र अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ विचरण के लिए पहाड़ की एक सुंदर झील पर गया। गजेंद्र बहुत प्रसन्न था और उसने और उसके झुंड ने उस मनभावन झील में स्नान किया और उसके साफ, ठंडे और मीठे पानी को पिया, जिस पर बहुत से कमल खिले हुए थे।
जब वह अपने साथियों और बच्चों के साथ खेल रहा था, तब पानी में एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और उसे जाने से रोक दिया। गजेंद्र बलशाली और शक्तिशाली था और उसने मगरमच्छ से लड़ने की कोशिश की। जब वह बहादुरी से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था तो उसका झुंड उसे डर और चिंता से देख रहा था। अन्य नर हाथियों ने उसे पीछे से मगरमच्छ के जबड़े से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि मगरमच्छ उनके लिए बहुत मजबूत था।
संघर्ष जारी रहा, गजेंद्र पानी में लड़ता हुआ कमजोर हो गया और थक गया, लेकिन मगरमच्छ, जो पानी का आदि था, बहुत शक्तिशाली था। बहुत समय तक दोनों प्राणियों में एक दूसरे को लेकर खींच तान चलती रही।
जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ा, गजेंद्र ने महसूस किया कि जो हो रहा था वह लीला थी, भगवान की इच्छा का प्रकटीकरण। वह आप ही बलवन्त और पराक्रमी था; और उसके झुण्ड के सब से बलशाली हाथी उसके पीछे पीछे थे। अगर उनकी संयुक्त शक्ति और शक्ति के साथ, वह खुद को बचाने में असमर्थ था, तो यह मगरमच्छ के साथ कोई साधारण संघर्ष नहीं था। यह परमात्मा की दिव्य लीला थी।
एक बार जब यह अहसास उसे हो गया, तो गजेंद्र ने खुद को पूरी तरह से भगवान के चरण कमलों में आत्मसमर्पित कर दिया और उन्हें पुकारा। उसने भगवान विष्णु को कमल अर्पित किया और प्रार्थना की:
” नमो भगवते वासुदेवाय!”
गजेंद्र ने कहा :
जिनके प्रवेश करने पर जिनको प्राप्त करके हमारा यह शरीर जागृत हो जाता है । ॐ शब्द से लक्षित उन सर्वेश्वर सर्वसमर्थ परमेश्वर को मन से नमन करते हैं ||२||
जिनके सहारे यह पूरा जगत टिका हुआ है, जिनसे यह जगत की उत्पत्ति हुई है, जो स्वयं ही इसके रूप में हैं,फिर भी जो विलक्षण और श्रेष्ठ हैं ऐसे भगवान् की में शरण लेता हुँ ||३||
अपने संकप के कारण संकल्प शक्ति से इस रचे हुए प्रकटकाल और प्रलयकाल में उसी प्रकार अप्रकट रहनेवाले इस शास्त्र में प्रसिद्ध जगत के कारणरूप प्रभु मेरी रक्षा करें ||४||
समय के प्रवाह सम्पूर्ण लोको केँ एवं ब्रह्मादि देवों के पञ्चभूतों में प्रवेश करने पर सम्पूर्ण कारणों के उनकी प्रकृति में लीन हो जानेपर उस समय दुर्ज्ञेय तथा अपार अन्धकार रूप प्रकृति ही बच रही थी | उसी अन्धकार से परे अपने परमधाम में सर्वव्यापक भगवान सभी और प्रकाशमान रहते है वो प्रभु मेरी रक्षा करे ||५||
अलग अलग रूपों से अपनी लीलाओ को प्रकार करने वाले, फिर भी भक्त लोग उनकी लीलाओ को नहीं समझपाते,उसी प्रकार सत्वप्रधान देवता और ऋषिमुनि आदि भी जिनकी लीलाओ को नहीं समझ पाते तो साधारण मनुष्य कैसे जान पायेगा ऐसे दुर्गम लीलाकृत लीला करनेवाले प्रभु मेरी रक्षा करें ||६||
सभी प्रकार की आसक्ति रहित, सभी जोवों में आत्मबुद्धि रखनेवाले,जो साधु के जैसे स्वभाव वाले हैं, ऋषि मुनिगण जिनके स्वरूप का साक्षात्कार करते हैं और अपनी इच्छा से वे ऋषिगण अखण्ड ब्रह्मचर्य आदि व्रत कर जिनके व्रतों का पालन करते हैं वो प्रभु मेरी रक्षा करें ||७||
जिनका हमारी तरह कर्मयुक्त न हो तो जन्म होता है या जो स्वयं जन्म लेते हैं और ना ही जिनके द्वारा अहंकार प्रेरित कर्म होते हैं, जो निर्गुण स्वरूपवाले भी है जिसका कोई नाम नहीं है, फिर भी समय समय पर सगुन स्वरुप धारण करते हैं और जगत का कल्याण करते हैं (पोषण भी करते हैं और संहार भी करते हैं) ||८||
अनंतशक्ति संपन्न उन भगवान् परब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार है उन निर्गुण और सगुन स्वरूप वाले भगवान् को बारम्बार नमस्कार है ||९||
स्वयं ही प्रकाशित भगवान् को नमस्कार है । जो मन वाणी से परे हैं ऐसे भगवान को बार बार नमन है ||१०||
मोक्ष सुख देनेवाले मोक्ष और सुख की अनुभूति कराने वाले प्रभुको नमस्कार है ||११||
सात्विक गुणों को स्वीकार करके शांत,रजोगुण को स्वीकार करके घोर और तमोगुण को स्वीकार करके प्रतित होने वाले भेदभाव रहित समभाव से रहनेवाले प्रभुको नमस्कार है ||१२||
शरीरादि इन्द्रियों के स्वामी पिण्डों के ज्ञाता सबके स्वामी एवं साक्षीरूप आपको नमस्कार है | अन्तर्यामी जो बिना कहे ही सबकुछ जानलेते है ऐसे प्रभुको नमस्कार है ||13||
सभी विषयों के ज्ञाता सभी के कारणरूप अविद्या के सूचित होने वाले सभी विषयो में अविद्यारूप में आभासित होने वाले आपको नमस्कार है ||१४||
सभी के कारण होने के बावजूद्द कारण रहित आपको नमस्कार है सम्पूर्ण वेदो एवं शास्त्रों में परम तत्व मोक्षस्वरूप आपको नमस्कार है ||१५||
जो त्रिगुणस्वरूप में काष्ठो में छिपे हुए ज्ञानमय अग्नि हैं जिनके मन में सृष्टि रचना की चेतना जागृत हो जाती है ज्ञानी लोग भी आपको ज्ञानस्वरूप में प्रकाशित करते रहते है उन प्रभुको में नमस्कार करता हुँ ||१६||
मेरे जैसे अविद्या ग्रस्त जिव की अविद्या रूपी फाँसी को काटने वाले दयालु परमेश्वर आलस्य न करने वाले प्रभु को मेरा नमस्कार है । अपने ही अंश से सम्पूर्ण जीवों के मन में अन्तर्यामी रूप में रहने वाले अनंत प्रभु को नमस्कार है ||१७||
देह, पुत्र, परिवार, मित्र, घर, संपत्ति में आसक्त लोगों के द्वारा कठिनता से प्राप्त होने वाले सर्वसमर्थ प्रभु को मेरा नमस्कार है ||१८||
जिन्हें धर्म धन और मोक्ष की कामना से भजने वाले उपासना करने वाले लोग अपनी मनचाही गति पा लेते हैं वे अतिशय दयालु कृपालु प्रभु मुझे इस आपत्तियों से सदा के लिए मुक्त करायें ||१९||
जिनके अनन्य भक्त लोग धर्म अर्थादि पदार्थ को नहीं मांगते सिर्फ प्रभु आप ही को पाने के लिए अथाक प्रयत्न करते हैं ||२०||
उन अविनाशी श्रेष्ठ्तम भक्तो के द्वारा प्राप्त होने लायक इन्द्रियों के द्वारा अगम्य अत्यंत प्रिय अंतरहित परिपूर्ण भगवान का में स्तवन करता हुँ ||२१||
ब्रह्मादि सर्व देवता चतुर्वेद सभी शास्त्र चराचर जीवों और आकृति के भेद से जिनके स्वरुप के अंश से लिखे गए हैं ||२२||
जिस तरह से प्रज्वलित अग्नि लपटे सूर्य की किरणे बार बार निकलती है और पुनः अपनेआप लीन हो जाती है उसी प्रकार मन, बुद्धि, सर्व इन्द्रियाँ और शरीर परमात्मा से प्रकट हो जाते है और पुनः उन्ही में लीन हो जाते हैं ||२३||
यह भगवान वास्तव में नाही देवता है नाही असुर न मनुष्य है नाही किसी प्राणी है, ना वो स्त्री है, ना वो पुरुष है, ना वे गुण है, ना कर्म है, सबका निषेध हो जाने पर भी जो बच जाए वही उनका स्वरूप है, ऐसे प्रभु मेरा उद्धार करने के लिए आविर्भूत हो जाए ||२४||
में इस ग्राह के चँगुल से छूटकर जीवित नहीं रहना चाहता, क्युंकी इस अज्ञानी हाथी से मुझे क्या लेना देना है ? मैं तो आत्मा से प्रकशित अज्ञान की निवृत्ति चाहता हुँ |
जिनका कभी नाश होता भगवान् की दया से जिसका उदय होता है ||२५ ||
मैं तो मोक्ष का अभिलाषी हुँ,विश्व को खिलौना बनाने वाले प्रभु,अजन्मा के सर्वव्यापक सर्वश्रेष्ठ भगवान को में प्रणाम करता हुँ ||२६||
जिन्होंने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मों को भस्मित कर दिया है वो योगीस्वरूप उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने ह्रदय में जिन्हें प्रकटित देखते है उन योगेश्वर भगवान् को में नमस्कार करता हुँ ||२७||
जिनकी तीन शक्तियाँ सत्व-रज-तम असह्य हैं,जो इन्द्रयों के रूप में प्रतीत होते हैं जिनकी इन्द्रियाँ विषय भोग में रहती है, ऐसे लोगों को जिनको मार्ग मिलना असंभव है
उन शरणागत रक्षक शक्तिशाली आपको नमन है ||२८||
जिनकी अविद्या नामकी शक्ति के कार्यरत अहङ्कार से ढके हुए अपने जिव जान नहीं पाता,उन अपरम्पार महिमावाले भगवान् में आपकी शरण में आया हुँ ||२९||
|| श्रीशुकदेवजी में कहा ||
जिन्होंने पूर्वोक्त प्रकार से भगवन की महिमा का वर्णन किया था उस गजराज के समीप जब ब्रह्मादि देव नहीं आये सिर्फ इतना ही नहीं अन्य कोई भी देव नहीं आये, तब साक्षात् श्रीहरि वहा प्रकट हुये ||३०||
गजराज को इस प्रकार दुखी देखकर और उसके द्वारा की गए इस स्तवन को सुनकर चतुर्भुज वाले,सुदर्शनधारी,चक्रधारी भगवान् गरुड़जी की पीठपर आरूढ़ होकर देवताओ के साथ उस स्थान पे पहुंचे जहा वह हाथी था ||३१||
सरोवर के भीतर महाबली गृह के द्वारा पकडे जाकर दुखी हुए उस हाथी ने भगवान् श्रीहरि को गरुड़ पर आते देखा | भगवान् श्रीहरि को देखकर अपनी सुंडको ऊपर उठाया जिसमे उसने कमल का फूल ले रखा था और बोला सर्वपूज्य हरि-नारायण आपको नमस्कार है यह बोला ||३२||
उसे पीड़ित देखकर नारायण वहा झील पर उतर गए | ग्राह (मगरमच्छ) के मुखसे उसे बचाकर निकाला और चक्र से उस ग्राह का मुँह चीरकर ग्राह के मुख से हाथी को बचा लिया ||३३||
मगरमच्छ का पूर्व जन्म:
मगरमच्छ अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व राजा हुहू था। एक बार, ऋषि देवल नहाने के लिए निकले थे। जब ऋषि भगवान सूर्य की उपासना कर रहे थे, तब राजा ने व्यंग्य के लिए उनका पैर खींच लिया।
ऋषि राजा से क्रोधित हो गए और उन्हें हुहू को अगले जन्म में मगरमच्छ बनने का श्राप दिया। राजा हुहू ने क्षमा मांगी, लेकिन देवल ने कहा कि वह अपने शाप को उलटने में सक्षम नहीं हैं। फिर, उन्होंने हुहू को आशीर्वाद दिया कि भगवान विष्णु मगरमच्छ का वध करेंगे और उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करेंगे।
भगवान अपने दिव्य ज्ञान में जानते थे कि मगरमच्छ कोई और नहीं बल्कि गंधर्वों का राजा हूहू था, जिसे देवला मुनि ने मगरमच्छ में बदलने का श्राप दिया था। अब मुक्त होकर, उसने भगवान के हाथों सभी पापों और बुराई से मुक्त होकर, गंधर्व के रूप में अपना वास्तविक रूप धारण किया। उन्होंने पूजा की और सर्वोच्च भगवान को नमन किया और गंधर्व लोक में लौट गए।
गजराज गजेंद्र का पूर्व जन्म:
अपने पिछले जन्म में गजेंद्र एक पांड्य राजा, इंद्रद्युम्न महाराजा थे। राजा तपस्या करने के लिए वन में गए। वे अपने ध्यान और भगवान के चिंतन में इतना लीन हो गए कि वे ऋषि अगस्त्य का स्वागत सत्कार करने में विफल हो गए जो उनसे मिलने आए थे। राजा को उनके आगमन की उपेक्षा करते हुए देखकर, ऋषि अगस्त्य ने उन्हें श्राप दिया कि उनका अगला जन्म हाथी के रूप में होगा।
भगवान की इस दिव्य लीला को गजेंद्र मोक्ष के रूप में मनाया जाता है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का प्रतीकात्मक अर्थ:
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का हिंदू दर्शन में एक जबरदस्त प्रतीकात्मक मूल्य है। यहाँ, गजेंद्र मनुष्य का प्रतिनिधित्व करता है, मगरमच्छ पाप है, और झील का मैला पानी संसार या माया है।
मनुष्य सांसारिक इच्छाओं और पापों में जकड़ा हुआ है और इस संसार में “कर्म” की अंतहीन श्रृंखला से बंधा हुआ है। वह मृत्यु और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र में फंस जाता है।
केवल भगवान के प्रति श्रद्धा-भक्ति के माध्यम से वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत वस्तुतः
विष्णु जी की सहायता मांगने का जाप है। गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत का नियमित पाठ करने से श्री विष्णु जी स्वंय मदद के लिए आते हैं। भगवन विष्णु जी साधक की उसी तरह से मदद करते हैं जैसे की उन्होंने गजेंद्र नाम के गज को भयानक मगरमच्छ के मुँह से निकला था। श्री मद्भागवत में इस का विवरण प्राप्त होता है। गजेंद्र ने ग्राह के मुख से बचने के लिए भगवन विष्णु जी को याद किया था और भगवान् विष्णु जी ने उसे मुक्त करवाया था। गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत के लाभ के बारे में माहात्म्य है की ये सभी पापों का नाशक है।
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र के लाभ :
गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत के कई लाभ हैं। इसका नित्य जाप करने से व्यक्ति के मुक्ति का मार्ग खुलता है और सभी संकट दूर होते हैं। इसके जाप से व्यक्ति विकट संकट से मुक्ति प्राप्त करता है। इसके जाप से कर्ज और पित्तर दोष शांत होता है। भगवन विष्णु जी के चरणोंमें घी का दीपक प्रज्वलित कर इसका जाप करने से लाभ प्राप्त होता है। इस स्त्रोत का जाप सूर्योदय सुद्ध होकरपूर्व दिशा की और मुँह करके किया जाना चाहिए। कर्ज मुक्ति के लिए इसका जाप करने से बड़े से बड़े प्रकार के ऋण से मुक्ति मिलती है।
गजेन्द्र मोक्ष भगवद पुराण की कथा है। गजेंद्र मोक्ष में भगवान विष्णु हाथी गजेंद्र को मगरमच्छ मकर के चंगुल से बचाने के लिए पृथ्वी पर आए, और गजेंद्र को मोक्ष दिया। गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र इस मंत्र के विश्व पठन में बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है जो आपको अवांछित स्थिति या कठिनाइयों से बाहर निकालता है। कहानी भागवत पुराण के 8 वें भाग में दिखाई देती है और राजा परीक्षित को श्री सूका द्वारा सुनाई जाती है। भगवान श्री हरी को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ स्त्रोत/ गजेंद्र स्तवन से ऋण मुक्ति, शत्रु से छुटकारा और दुर्भाग्य का नाश होता है। गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ सूर्योदय से पूर्व स्नान करके और पूर्व दिशा में मुख करके करना चाहिए !
जिस भी व्यक्ति के कर्ज बहुत हो गया और उतरने का नाम नही ले रहा है तो उनके लिए गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र बहुत लाभकारी रहता हैं ! जिस भी व्यक्ति को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है उनके लिए भी गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र पाठ करना लाभकारी रहता हैं ! जो भी व्यक्ति किसी भी शुभ दिन में शुभ समय पर या स्वार्थ सिद्धि योग या अमृत सिद्धि योग में प्रातःकाल स्नान करके भगवान श्री विष्णु जी के सामने पूर्व मुखी होकर कुश के आसन पर बैठकर धूप-दीप आरती के उपरांत गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र-श्रीमद्भागवत का पाठ करके भगवान श्री विष्णु जी की आरती कर हवन आदि करने से व्यक्ति को कर्ज के तनाव से मुक्ति मिलती हैं
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र
ओं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ||
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम योऽस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ||
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम अविद्धदृक्साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्ममूलोऽवतु मां परात्परः ||
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु
तमस्तदासीद्गहनं गभीरं यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः ||
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ||
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं विमुक्तसङ्गा मुनयः सुसाधवः
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतात्मभूताः सुहृदः स मे गतिः ||
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा न नामरूपे गुणदोष एव वा
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति ||
तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे ||
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ||
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ||
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ||
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः ||
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे
असता च्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः ||
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय निष्कारणायाद्भुतकारणाय
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय नमोऽपवर्गाय परायणाय ||
गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ||
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ||
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ||
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति किं चाशिषो रात्यपि देहमव्ययं करोतु मेऽदभ्रदयो विमोक्षणम ||
एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थं वाञ्छन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमङ्गलं गायन्त आनन्दसमुद्रमग्नाः ||
तमक्षरं ब्रह्म परं परेशमव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूरमनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ||
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ||
यथार्चिषोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयान्त्यसकृत्स्वरोचिषः
तथा यतोऽयं गुणसम्प्रवाहो बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ||
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यङ्न स्त्री न षण्ढो न पुमान्न जन्तुः नायं गुणः कर्म न सन्न चासन्निषेधशेषो जयतादशेषः ||
जिजीविषे नाहमिहामुया किमन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ||
सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोऽस्मि परं पदम ||
योगरन्धितकर्माणो हृदि योगविभाविते
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम ||
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ||
नायं वेद स्वमात्मानं यच्छक्त्याहंधिया हतम
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम ||
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय