श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
मीराबाई के पत्र के उत्तर में गोस्वामीजी आगे लिखते हैं –
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौ ।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौ ॥
जितने सुहृद और अच्छी तरह पूजने योग्य लोग हैं वे सब श्रीरघुनाथजी के संबंध और प्रेम से माने जाते हैं, बस, अब अधिक क्या कहूँ। जिस अंजन के लगाने से आँखें ही फूट जायँ वह अंजन ही किस काम का?
तुलसी सो सब भाँति परम हित
पूज्य प्रानते प्यारो ।
जासों होय सनेह राम पद
एतो मतो हमारो ॥
तुलसीदासजी कहते है, जिसके कारण श्रीराम के चरणों में प्रेम हो, वही सब प्रकार से अपना परम हितकारी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्यारा है। यही हमारा मत है।
तत्पश्चात गोस्वामीजी काशी पहुँचे और वहीं प्रह्लाद घाट पर एक ब्राह्मण के घर निवास किया। भगवान विश्वनाथ का दर्शन कर हृदय में आनंद उमडा। वहीं पर उनकी कवित्वशक्ति स्फुरित हो गयी और वहाँ संस्कृत में रामचरित लिखना प्रारंभ कर दिया।
पर ये बडे आश्चर्य की बात थी की वे दिनभर में जितनी रचना करते, रात में सब अदृश्य हो जाता। सुरक्षा के अनेक यत्न किये गये परंतु सब व्यर्थ। लगातार सात दिन तक यह क्रम चलता रहा। आठवें दिन भगवान शिव ने गोस्वामीजी के स्वप्न में जाकर कहा – तुम अपनी भाषा में काव्यरचना करो।
नींद उचट गयी। गोस्वामीजी उठकर बैठ गये। हृदय में स्वप्न के स्वर गूँज रहे थे । इसी समय भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही उनके सामने प्रकट हुए।
गोस्वामीजी ने साष्टांग दण्डवत किया। शिवजी ने कहा, ‘भैया! अपनी मातृभाषा में काव्यरचना करो। संस्कृत के पचडे में मत पडो। जिससे सबका कल्याण हो वही करना चाहिए।
श्रीहनुमानजी के आदेशानुसार श्रीअयोध्या में ही अपना काव्य प्रकाशित किजिये। मेरे आशिर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी।’ इतना कहकर गौरी शंकर अंतर्धान हो गये और उनकी कृपा एवं अपने सौभाग्य की प्रशंसा करते हुए गोस्वामीजी अयोध्या पहुँचे।
अयोध्या पहुँचकर सरयू स्नान करके अभी पुलिन में ही विचर रहे थे कि एक संत समीप आकर अपने आप ही कहने लगे कि यदि आपको अवधवास करना हो तो श्रीहनुमानगढी के समीप एक बडा ही रमणीय स्थल है। आप हमारे संग चलकर देख लिजिये, यदि स्थान पसंद आ जाय तो वहीं रहकर भजन, साधन किजिये।
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
क्रमशः (भाग – २२)